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Bihar News: पुस्तक का संक्षिप्त परिचय यदुनन्दन शर्मा : बिहार के एक किसान नेता लेखक :शो कुवाजिमा ;यह पुस्तक शो कुवाजिमा के 1966 में गया में लिए गए यदुनंदन शर्मा के साक्षात्कार पर आधारित है।

पुस्तक का संक्षिप्त परिचय यदुनन्दन शर्मा : बिहार के एक किसान नेता लेखक :शो कुवाजिमा 

Bihar News:  पुस्तक का संक्षिप्त परिचय यदुनन्दन शर्मा : बिहार के एक किसान नेता लेखक :शो कुवाजिमा ;यह पुस्तक शो कुवाजिमा के 1966 में गया में लिए गए यदुनंदन शर्मा के साक्षात्कार पर आधारित है।

यह पुस्तक शो कुवाजिमा के 1966 में गया में लिए गए यदुनंदन शर्मा के साक्षात्कार पर आधारित है। कुवाजिमा मूलतः हिंदी के प्राध्यापक रहे ओसाका यूनिवर्सिटी में और उन्होंने स्वामी सहजानंद सरस्वती लिखित “मेरा जीवन संघर्ष “ को अपने हिंदी के पढ़ाने के विषय सूची में रखा। इन्होंने सहजानंद रचित “किसान सभा के संस्मरण “ का जापानी अनुवाद भी किया है। इस पुस्तक से किसान सभा के बकाश्त संघर्ष और उनके नेतृत्व परिलक्षित होता है। शाहबाजपुर, मझियावाँ, रेवाड़ा आदि जगहों पर इस संघर्ष की कहानी और यदुनंदन शर्मा की मुख्य भागीदारी इस पुस्तक में दर्शाया गया है। स्वामी सहजानंद सरस्वती , नियामतपुर आश्रम से उनके संबंध विस्तृत रूप से वर्णित है। साथ ही यह बिहार के तीस व चालीस के दशक के किसान आंदोलन का इतिहास भी दर्शाता है। इतिहासकारों ने अभी तक यदुनंदन शर्मा सरीखे लोगों का देश के निर्माण में योगदान की अनदेखी की है और यह पुस्तक उस ओर सार्थक प्रयास है।


पंडित यदुनंदन शर्मा का संक्षिप्त परिचय

पंडित जी ने तत्‍कालीन दक्षिण बिहार(आज का झारखंड राज्‍य भी) में जमींदारी उन्‍मूलन के खिलाफ बिगुल फूंका था। पंडित मदन मोहन मालवीय से जिद करके वाराणसी हिंदू यूनिवर्सिटी में नामांकन करवाया। नामांकन की फीस नहीं होने पर शिक्षकों के शौचालय से निकलनेवाले मल को ढोने के लिए भी तैयार हो गये थे। इसके बाद मालवीय जी के निर्देश पर इनकी फीस माफ कर दी गयी थी। बीएचयू के मेस में छात्रों का खाना बनाकर खुद के लिए खाने का जुगाड़ किया। वहां से स्‍नाातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पंडित यदुनंदन शर्मा को टिकारी महाराज ने अपने यहां अकाउंटेंट की नौकरी दी थी। उनका ऑफर ठुकरा दिया। इसके बाद ब्रिटिश शासन काल  में दारोगा की नौकरी मिली। लेकिन ज्‍वाइन करने के कुछ ही महीने के बाद इन्‍होंने नौकरी छोड़ दी। वह भी इसलिए कि अंग्रेज अफसर ने भारतीयों को गाली दी थी। इसके बाद से वे महात्‍मा गांधी के आह्वान पर 1933 में उनके आंदोलन में कूद पड़े। वे गया जिला कांग्रेस के अध्‍यक्ष भी रहे। हालांकि महात्‍मा गांधी के विचारों से जल्‍द ही इनका मतभेद हो गया। ये क्रांतिकारी विचार के थे। इस बात को लेकर इन्‍हें भरोसा कम था कि मांगने से आजादी मिलेगी। इसके बाद तो इन्‍होंने अंग्रेजों को सीधा ललकारना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने इन्‍हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर इनाम घोषित कर रखा था। इनके नेयामतपुर आश्रम पर अंधाधूध गोलियां दागी गयी थीं। इस दौरान ये नेयामतपुर के ग्रामीणों के सहयोग से अपनी झूठी शवयात्रा निकलवा कर अंग्रेजों के सामने से उन्‍हें चकमा देते हुए निकल भागे थे। इन्‍होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ गया-औरंगाबाद में कई सभाएं की थीं। 1937 में गया में हुए अखिल भारतीय किसान सभा जिसमें करीब एक लाख लोग जुटे थे, उस आयोजन के स्‍वागताध्‍यक्ष पंडित यदुनंदन शर्मा ही थे। पंडित राहुल सांकृत्‍यायन ने अपने साहित्‍य में इनके बारे में विस्‍तार से चर्चा की है। वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्‍काॅलर वाल्‍टर हाउजर ने इंडियन पीजेंट मूवमेंट नाम पुस्‍तक में पंडित यदुनंदन शर्मा और इनके जमींदारी उन्‍मूलन का  विस्‍तार से वर्णण किया है। पंडित नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, डॉ राजेंद्र प्रसाद, स्वामी सहजानंद सरस्वती, जय प्रकाश नारायण, महात्मा गांधी समेत समकालीन तमाम नेताओं का इस आश्रम में आना हुआ है। रेवड़ा किसान सत्‍याग्रह के सूत्रधार पंडित यदुनंदन शर्मा ही रहे हैं।

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